Home होम भोपाल गैस त्रासदी की कहानी

भोपाल गैस त्रासदी की कहानी

भोपाल गैस
Indian political activits wearing masks protest in front of the Union Carbide pesticide plant in Bhopal, 04 June 2003 to raise awarness about the toxic waste of the factory and its surroundings. An estimated 3,500 to 7,500 people were killed and more than half a million seriously injured when toxic gas leaked from the pesticide plant in December 1984. Since then, survivors, residents and various activists regulary carry out demonstrations to demand the cleaning of the site. AFP PHOTO (Photo credit should read /AFP via Getty Images)

भोपाल गैस त्रासदी, जिसे भोपाल आपदा के नाम से भी जाना जाता है, 3 दिसंबर 1984 को भारत के भोपाल शहर में हुई। यह एक विनाशकारी औद्योगिक दुर्घटना थी जो यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के कीटनाशक संयंत्र में हुई। इस घटना में लगभग 3,787 लोगों की मौत हुई और हजारों लोग घायल हुए। यह इतिहास की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है, जिसका प्रभाव आज भी भोपाल और विश्व के लोगों पर बना हुआ है। इस दुर्घटना के कारणों में संयंत्र की सुरक्षा प्रणाली की विफलता, रखरखाव की कमी और खतरनाक रसायनों का खराब प्रबंधन शामिल था। इस हादसे ने ना सिर्फ तुरंत लोगों की जान ली और उन्हें घायल किया, बल्कि लंबे समय तक चलने वाले स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव भी छोड़े।

File:Union Carbide pesticide factory, Bhopal, India, 1985.jpg

यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) की पृष्ठभूमि

भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का कीटनाशक संयंत्र 1969 में स्थापित किया गया था। यह अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) और भारतीय निवेशकों के बीच एक संयुक्त उपक्रम था। यह संयंत्र कई प्रकार के कीटनाशकों का उत्पादन करता था, जिनमें मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) नामक अत्यंत विषाक्त रसायन भी शामिल था। दुर्घटना के समय, यह संयंत्र ना केवल कीटनाशकों का उत्पादन करता था, बल्कि खतरनाक कचरे का निपटान भी करता था।

संयंत्र का प्रबंधन यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की एक सहायक कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) द्वारा किया जा रहा था, जो संयंत्र के रखरखाव और सुरक्षा प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार थी। हालांकि, यह बताया गया है कि संयंत्र में मौजूद सुरक्षा प्रणाली अपर्याप्त थी और ठीक से देखभाल नहीं की गई थी। इस संयंत्र में छोटी-मोटी गैस लीक की घटनाएँ पहले भी हुई थीं, जिन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। कंपनी ने लागत कम करने के लिए सुरक्षा कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी, और शेष कर्मचारियों को इतनी बड़ी आपदा से निपटने के लिए ठीक से प्रशिक्षित नहीं किया गया था। ये सभी कारण उस दुखद घटना में योगदान कर रहे थे जो 3 दिसंबर 1984 को हुई।

दुर्घटना और तत्काल प्रभाव

भोपाल गैस त्रासदी 3 दिसंबर 1984 को उस समय हुई जब यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र में मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ। यह गैस अत्यधिक विषैली होती है और गंभीर श्वसन समस्याओं का कारण बन सकती है। रात लगभग 1:00 बजे गैस का रिसाव शुरू हुआ, और कुछ ही घंटों में हजारों लोग इस विषैली गैस से प्रभावित हो गए। कई लोग सो रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है, जबकि कुछ लोग इलाके से भागने की कोशिश कर रहे थे।

दुर्घटना के तुरंत बाद का दृश्य अत्यंत भयावह था। हजारों लोग श्वसन समस्याओं और जलने के कारण पीड़ित हो गए थे। कई लोगों की कुछ ही घंटों में मौत हो गई, जबकि अन्य की मौत अगले कुछ दिनों और हफ्तों में हुई। स्थानीय अस्पताल मरीजों से भर गए और कई लोगों का इलाज अस्थायी अस्पतालों और सड़कों पर किया गया। इस आपदा का पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ा, क्योंकि विषैली गैस ने इलाके के पेड़-पौधों और जानवरों को भी मार डाला।

undefined

लंबे समय तक के प्रभाव और कानूनी कार्यवाही

भोपाल गैस त्रासदी के दीर्घकालिक प्रभाव आज भी भोपाल और आसपास के क्षेत्रों के लोगों द्वारा महसूस किए जाते हैं। कई जीवित बचे लोग श्वसन समस्याओं, तंत्रिका विकारों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं जो उस विषैली गैस के संपर्क में आने से हुईं। इस रिसाव के कारण पर्यावरणीय क्षति भी महसूस की जा रही है, क्योंकि विषैले रसायनों ने मिट्टी और पानी को दूषित कर दिया है।

यूनियन कार्बाइड और उसके प्रबंधन के खिलाफ कानूनी कार्यवाही लंबे समय तक चली और जटिल रही। यूनियन कार्बाइड ने शुरू में इस आपदा के लिए जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया और इसे तोड़फोड़ का मामला बताया। 1989 में, यूनियन कार्बाइड ने भारतीय सरकार के साथ $470 मिलियन में समझौता किया। लेकिन इस मुआवजे को पीड़ित समुदायों और बचे हुए लोगों ने अपर्याप्त माना।

undefined

निष्कर्ष

अंत में, 1984 की भोपाल गैस त्रासदी इतिहास की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक बनी हुई है। यह दुर्घटना संयंत्र की सुरक्षा प्रणाली में विफलता, रखरखाव की कमी और खतरनाक रसायनों के खराब प्रबंधन के कारण हुई। इस त्रासदी ने हमें औद्योगिक सुरक्षा के महत्व और आपदाओं के लिए तैयार रहने की आवश्यकता की कड़वी सीख दी है। यह त्रासदी याद दिलाती है कि कंपनियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, और सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नियमों का पालन कराएँ और किसी आपदा की स्थिति में प्रभावित समुदायों को पर्याप्त सहायता प्रदान करें।